वीरेंद्र सिंह बृजवासी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
वीरेंद्र सिंह बृजवासी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 19 अगस्त 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत ....भैया के होते बहना की, निज शान नहीं घट सकती है


भैया   के   होते  बहना  की,

निज शान नहीं घट सकती है,

राखी के स्वर्णिम धागों  की,

भी आन नहीं घट सकती है।


तेरे   सुन्दरतम   सपनों  की,

परवान नहीं  घट सकती  है,

बहना-भैया  के  रिश्तों   की,

पहचान नहीं घट सकती  है!


राखी  बन्धन  के  गीतों  की,

मृदु तान नहीं  घट सकती है,

भैया के  सम्मुख  बहना. की,

मुस्कान नहीं  घट सकती  है!


हो  सहोदरा  या   मुंह  बोली,

बहना  तो  बहना   होती   है,

बहना के  प्रति  सद्भावों  की,

भी खान नहीं घट सकती है!


बहना  के  बिन  भैया  कैसा,

कैसी भैया  के   बिन  बहना,

सन्तुलन  साधने  लेष  कोई,

सन्तान नहीं घट  सकती  है!

   

✍️वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9719275453

        

सोमवार, 20 मई 2024

मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से आयोजित काव्य गोष्ठी में रविवार 19 मई 2024 को वरिष्ठ गीतकार वीरेन्द्र 'ब्रजवासी' को कलाश्री सम्मान

 



महानगर मुरादाबाद के वरिष्ठ गीतकार वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी' को उनकी साहित्यिक साधना के लिए कला भारती साहित्य समागम, मुरादाबाद की ओर से रविवार 19 मई 2024 को आयोजित समारोह में कलाश्री सम्मान से अलंकृत किया गया। उपरोक्त सामान-समारोह एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन मिलन विहार स्थित आकांक्षा इंटर कॉलेज में हुआ। राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता बाबा संजीव आकांक्षी ने की। मुख्य अतिथि डॉ. प्रेमवती उपाध्याय एवं विशिष्ट अतिथियों के रूप में डॉ. बृजपाल सिंह यादव एवं रामदत्त द्विवेदी मंचासीन हुए। कार्यक्रम का संचालन आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने किया। 

    सम्मान स्वरूप वीरेन्द्र 'ब्रजवासी' को अंग-वस्त्र, मानपत्र एवं प्रतीक चिह्न अर्पित किए गए। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख का वाचन राजीव प्रखर एवं अर्पित मान-पत्र का वाचन योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा किया गया। 

      सम्मानित साहित्यकार वीरेन्द्र 'ब्रजवासी' की साहित्यिक यात्रा पर अपने विचार रखते हुए कार्यक्रम अध्यक्ष बाबा संजीव आकांक्षी ने कहा - "श्री ब्रजवासी सामाजिक जीवन से जुड़े हुए एक ऐसे संवेदनशील रचनाकार हैं जिनकी रचनाएं काव्य से जुड़े प्रत्येक  पाठक अथवा श्रोता के हृदय को गहराई तक स्पर्श कर जाती हैं।" 

 श्री ब्रजवासी की रचनाधर्मिता पर विशिष्ट अतिथि डाॅ. प्रेमवती उपाध्याय का कहना था - "अपनी पावन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से जुड़े रहकर, समाज के प्रत्येक वर्ग तक अपनी गहरी पैठ बनाना श्री ब्रजवासी जी के रचनाकर्म की विशेषता रही है।" 

विशिष्ट अतिथि डॉ. बृजपाल सिंह यादव ने कहा - "उनका रचनाकर्म जहाॅं एक ओर ब्रज की महान परम्परा के दर्शन कराता है वहीं दैनिक जीवन से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी उनकी पैनी दृष्टि रहती है। वह समस्याओं की बात ही नहीं करते अपितु उनके यथासंभव हल भी प्रस्तुत करते हैं।"            उपरोक्त सम्मान समारोह में वीरेन्द्र 'ब्रजवासी' के सम्मान में एक काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन हुआ। काव्य-पाठ करते हुए सम्मानित साहित्यकार वीरेन्द्र ब्रजवासी ने कहा - 

माॅं का दिल कितना होता है, 

चिड़िया के जितना होता है। 

खुशियों में जितना खुश होता, 

दुख में उतना ही रोता है। 

भूख-प्यास को माॅं बच्चे की, 

किलकारी से पढ़ लेती है। 

ऑंचल से ढक कर बच्चे का, 

उदर दूध से भर देती है। 

काला टीका लगा नज़र की, 

चिंता से डरना होता है।"

 इसके अतिरिक्त अन्य उपस्थित रचनाकारों दुष्यंत बाबा, राजीव प्रखर, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, योगेन्द्र वर्मा व्योम, डॉ. मनोज रस्तोगी, मनोज मनु, ओंकार सिंह ओंकार, नकुल त्यागी, योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई, रमेश गुप्त, अभिनव चौहान, रामदत्त द्विवेदी, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय, बाबा संजीव आकांक्षी, रघुराज सिंह निश्चल आदि ने भी विभिन्न सामाजिक मुद्दों को अपनी-अपनी  रचनाओं के माध्यम से उठाया। मनोज मनु द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।









































शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत..... चंदा तेरी कला जानने भेजा हमने यान


 चंदा   तेरी   कला  जानने 

भेजा       हमने        यान

बता सकें दुनियाँ को सारा

तेरा         चंद्र       विधान।

          --------------

तीव्र  वेग  से  उड़ते - उड़ते

पहुंचे          तेरे         पास

तेरी  धरती   को   छूने  का

था         पूरा       विस्वास

आँखमिचौनी को विक्रम ने

चुना        क्षेत्र      सुनसान।

चंदा तेरी-------------------


पर तू ज्यादा खुश मत  होना

हम           फिर        आएंगे

अमर  तिरंगा  फहराकर   ही

वापस                     जाएंगे

हार, शब्द  से   सदा  दूर  ही

रहता          है         विज्ञान।

चंदा तेरी-------------------


इसरो  के   वैज्ञानिक   रखते

हैं         फौलादी         सोच

अथक  परिश्रम से भी करते

कभी        नहीं        संकोच

सूर्य,चंद्र,मंगल,शनि सब पर

भेज     रहे     नित      यान।

चंदा तेरी-------------------


असफलता की नहीं  सोचते

करते        बस         प्रयास

सकल ग्रहों पर पग  धरनेकी

करते        केवल       आस

कब दिन निकला रात होगई

हुआ    न      कोई      भान।

चंदा तेरी-------------------


सारा   भारतवर्ष   खड़ा   है

तन,   मन,   धन   से   साथ

सिर्फ  जीत  के लिए प्रार्थना

करता       है       दिन- रात

हिम्मत करने  वालों  के संग

रहता         है        भगवान।

चंदा तेरी-------------------


✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

                  

शनिवार, 8 जुलाई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी के नौ दोहे .....

 


1. 

सत्ता मद  में डूबकर,करो न अत्याचार

सच्चाई के सामने, झूठ मानता हार।

2. 

निर्धन की संपत्ति पर, करो नहीं अधिकार

निर्बल के अभिशाप से, होता बंटाधार।

3. 

उसके घर माफ़ी नहीं,सुन ले साहूकार

तेरी करनी की सज़ा, देगा पालनहार।

4.

 दुर्गा माँ का रूप है, बेटी का अवतार

 अपने हाथों से करे, दुष्टों का संहार।

5. 

अहम् वहम में मत रहो, धनबल सुख का सार,

मिट्टी में मिल जाएगा, मायावी संसार।

6. 

बेटी की किलकारियाँ, ईश्वर का उपहार

जिस घर में बेटी नहीं,वह घर है बेकार।

7. 

आदर्शो की बेल पर, खिलें ख़ुशी के फूल

नहीं सताते राह में विपदाओं के शूल।

8. 

बेटों से कमतर नहीं,बेटी का किरदार

सुख-दुख में रहती सदा सेवा को तैयार।

9. 

कभी किसी से मत करो, कटुता का व्यवहार

सबके ही एहसान का, करो व्यक्त आभार।

          

✍️वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर   9719275453

                        .......

सोमवार, 23 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत ....मैं संसद से उठ आया हूँ


मैं  संसद   से    उठ  आया   हूँ 

सबकी  आँख  खोल  आया  हूँ 

गुरुओं  का आशीष  पिता   की

सीख   स्वयं   देकर  आया   हूँ।

         ....................


बोली  माँ   मत   दूध   लजाना

सच का  केवल  साथ  निभाना

और  पिता   ने  यह   बतलाया

कभी  पराया  धन  मत  खाना

बचपन  से   सुनता  आया   हूँ।

मैं संसद से..............


झूठों   से   नफरत   कर   लेना

सच की  दौलत  तुम  भर  लेना

जिसे  न  पूरा  कर  पाओ  तुम 

ऐसा   वादा   कर    मत   लेना

जीवन   में   गुनता  आया   हूँ।

मैं संसद से..............


सब  धर्मों   का  आदर  करना

जात-पात  से  बचकर   रहना

कोई   कितना   भी   समझाए

मानवता   से    रिश्ता   रखना 

यही  भाव   बुनता  आया   हूँ।

मैं संसद से...............


खद्दर  की   पौषाक    पहनना 

वोटर  को  भगवान   समझना

वह  जो   काम  बताएं  तुमको 

उसको   पूरे  मन   से    करना 

ऐसा   ही   करता    आया   हूँ।

मैं संसद से.............


रोज़  व्यर्थ  का   रोना - धोना 

पाला   रोज़    बदलते   रहना 

घालमेल   की  इस   संसद में

चाहे जिसको  आका   कहना

भावों  को  चुनता  आया   हूँ।

मैं संसद से......

    

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

   मोबाइल फोन नंबर 9719275453

              ---------

गुरुवार, 27 अक्टूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कथा....छटाँक भर जीरा!

 


लाला शुद्धबुद्धि अपनी किराने की दुकान पर बैठे-बैठे ग्राहकों के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। सोच रहे थे कि आधा दिन निकल गया परंतु किसी ग्राहक का अता-पता ही नहीं।

   तभी उन्हें एक ग्राहक दुकान की ओर आता दिखाई दिया। लाला शुद्धबुद्धि ने बढ़कर ग्राहक की इच्छा जानने हेतु पूछा,क्या चाहिए श्रीमान जी।

 ग्राहक कुछ बोलता इससे पहले तराजू के पास पड़े पाँच किलो,दस किलो,बीस किलो,तथा पचास किलो वज़्न के बाटों में यह बहस ज़ोर पकड़ गई कि दुकान पर पधारे ग्राहक महोदय कितने वज़्न का सौदा खरीदने का मन बना रहे हैं।

    सबसे पहले पांच किलो का बाट आगे आया और बोला आजकल महंगाई इतनी हो गई है कि ग्राहक को पांच किलो सौदा खरीदने के लिए भी सौ बार सोचना पड़ जाता है। ऐसे समय में केवल मैं ही तो ग्राहक की इच्छा पर खरा उतरता हूँ।

  तभी उसकी बात बीच में ही काटते हुए दस किलो का बाट अकड़ कर बोला। तू छोटा मुँह बड़ी बात मत किया कर। औकात में रहकर बोलना सीख ले समझा नहीं तो,,,,,आजकल कोई भी अपनी हैसियत को गिराकर खरीदारी करना उचित नहीं समझता। कम से कम ग्राहक का पहनावा देखकर ही अनुमान लगा लिया कर। घर के खर्चे के हिसाब से ही तो चीज़ ली जाती है। अब तू देखता रह भाई साहब मुझ पर ही अपना हाथ रखने वाले हैं।

  इतना सुनते ही दोनों बाटों को पीछे धकेलते हुए बीस किलो का बाट बोला हमारे ग्राहक महोदय, दुकान तक कोई पैदल या फटीचर साइकिल पर चढ़कर थोड़े आए हैं।कार से आए हैं कार से। कोई पांच या दस किलो सामान तुलवाकर घर ले जाएंगे क्या।,,,,,

   लेकिन ग्राहक महोदय शांत खड़े रहकर कुछ सोचने लगे तभी पचास किलो वज़्न का बाट सामने आया और सम्माननीय ग्राहक से बड़े ही विनम्र भाव से बोला, श्रीमान जी यह सारे के सारे बाट एकदम मूर्ख हैं मूर्ख। यह इतना भी नहीं समझ पा रहे हैं कि आप इतनी बड़ी गाड़ी में बैठकर इस दुकान पर आए हैं तो क्या दस या बीस किलो सौदे में लिए  ही इतना पेट्रोल  फूंकेंगे। मैंन इन्हें इतनी बार समझाया है कि ग्राहक देखकर ही अपना मुंह खोला करो। मगर ये हैं,कि समझने को तैयार ही नहीं।इनको तो बिना सोचे समझे बोलना सिद्ध,,,,,

    तभी ग्राहक ने दुकानदार शुद्धबुद्धि को मात्र एक छटाँक जीरा तौलने का आदेश दिया।

    इतना सुनते ही सभी बाटों के मुँह लटक गए। मन ही मन ग्राहक को भला-बुरा कहते हुए अपने स्थान पर निर्जीव पड़े रहकर अगले ग्राहक की प्रतीक्षा करने लगे।

    तभी छटाँक भर के बाट ने गर्व से सीना चौड़ा करते हुए कहा। कि छोटों की अहमियत  को कभी कम नहीं समझना चाहिए। सबने यह कहावत तो सुनी ही होगी।

     रहिमन देखि बड़ेन कौं

     लघु  न   दीजिए  डारि।।

  दुकानदार शुद्धबुद्धि ने ग्राहक को एक छटाँक जीरा तोलकर दे दिया।और कीमत लेकर बोरी के नीचे रखते हुए कहा। कृपया आते रहिएगा आप ही की दुकान है।

   दोनों एक दूसरे का  धन्यवाद करते हुए मुस्कुराने लगे।

 ✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी 

मुरादाबाद 244001 

उत्तर प्रदेश, भारत



      

                  

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी की लघु कहानी......मुल्ला उमर का वहम


मुल्ला उमर बहुत  ही वहमी किस्म का इंसान था। वैसे तो वह खूब हट्टा-कट्टा इकहरे बदन का गोरा चिट्टा इंसान होते हुए भी बीमारी का वहम पाले रहता। उसकी खुराक भी ऐसी कि नौजवानों को भी पीछे छोड़ दे। फिर भी उसके दिमाग में यही फितूर रहता कि हो न हो मेरा शरीर पूरी तरह  स्वस्थ नहीं है। बस इसी उधेड़ बुन में घरवालों से नई से नई चीजें बनवाकर खाता रहता। घर वालों के समझाने पर भी वह कुछ समझने को तैयार न होता। ज्यादा कुछ कहने पर घरवालों को ही उल्टा सीधा कहने लगता।

    एक दिन वह एक पहुंचे हुए दरवेश हनीफ मियां के पास पहुँचा। आदाब अर्ज़ के पश्चात उसने मियां जी से कहा कि हे दरवेश, मुझे हर वक्त ऐसा क्यों लगता रहता है कि मेरे भीतर कोई बड़ी बीमारी पल रही है। मैं जिससे भी पूछता हूँ वह यही कहकर 

टाल देता है कि तुम बिल्कुल ठीक हो। कहीं से भी बीमार नहीं लगते। यह तो केवल तुम्हारे मन का वहम है वहम, और वहम का इलाज तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं।,,,,

    क्या आप भी ऐसा ही मानते हैं दरवेश जी। दरवेश जी मुस्कुराकर बोले। बेटा,, यदि तुम इस वहम से छुटकारा ही पाना चाहते हो तो, जैसा मैं कहूँ  वैसा करो। तुम्हारी शंका का समाधान तुम्हें अवश्य ही मिल जाएगा।

    उमर ने कहा मोहतरम आपका हुक्म सर आंखों पर।

आप जो कहेंगे मैं वैसा ही करूंगा। दरवेश ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा। बेटा, तुम अभी जाकर दुनियाँ के माने-जाने किसी अस्पताल में उसके मुख्य द्वार से प्रवेश करके वहाँ के सभी वार्डों में ज़ेरे इलाज मरीजों को ध्यान से देखते हुए अस्पताल के पिछले दरवाज़े से बाहर निकल जाना। तुम्हें तुम्हारी बीमारी का तुरंत समाधान मिल जाएगा।

    उमर ने वैसा ही किया और  एक जाने-माने अस्पताल के मुख्य द्वार से प्रवेश करके उसके भिन्न-भिन्न वार्डों से गुजरते हुए आगे बढ़ने लगा।

   सबसे पहले हड्डी वार्ड का नज़ारा देखकर उसका दिल ही बैठने लगा। उसने देखा कोई रो रहा है, कोई बेहोश पड़ा है। किसी की टांगें शिकंजे में कसी हुई हैं, तो किसी की टांगों को वजन लटकाकर ऊपर उठा रखा है।किसी का पूरा शरीर ही पट्टियों से बंधा हुआ है।

       थोड़ा और आगे बढ़ा तो उसने देखा डॉक्टर लोग एक मरीज के सीने को ज़ोर-ज़ोर से दबाकर उसे साँस दिलाने की कोशिश कर रहे हैं। उसने दिल पक्का करके एक डॉक्टर से पूछा आप ऐसा क्यों कर रहे हैं। तो डॉक्टर ने बताया भैया, इसका दिल कोई हरकत नहीं कर रहा है। दिल को चालू करने के लिए ऐसा करना पड़ता है। चल गया तो ठीक वर्ना,,,,,,,कह नहीं सकते। मुँह व नाक में कई नालियां देखकर उसने आगे बढ़ना ही ठीक समझा।

     इस तरह वह कभी आंखों,कभी दांतों, कभी टी.बी. वार्ड तो कभी चीर फाड़ कर रहे डॉक्टरों के शल्य चिकित्सा कक्ष में दूर से ही झांकते हुए अल्लाह- अल्लाह करता हुआ आगे बढ़ गया। रास्ते में हर एक डॉक्टर के पास मरीजों की लंबी-लंबी लाइनें देखकर जल्दी से बाहर निकलने का रास्ता खोजने लगा। पूछते-पाछते वह अस्पताल के बाहर आकर सोचने लगा कि पीर साहब ने ठीक ही कहा था। अब मुझे  पूरा यकीन हो गया है कि मुझे कोई बीमारी नहीं है ।

   मुल्ला उमर ने दरवेश जी के साथ-साथ सभी घरवालों को आदाब करते हुए अपने ऊपर परवरदिगार के रहमोकरम की सराहना करते हुए सभी से कहा कि बेवजह वहम करना बहुत बड़ी नासमझी है भाई।

 ✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल फोन नंबर  9719275453

                    

गुरुवार, 25 अगस्त 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कहानी.......आज भी,,,,

सर्वज्ञान विद्यालय के छात्र भीखू से स्वजातीय छात्रों ने पूछा अरे यार आज तो तुम एकदम सुस्त,थके-थके,मरियल से दिख रहे हो। तुम्हारा चेहरा भी बुझा बुझा और शरीर भी बेदम सा लग रहा है। तुम्हारे सूखे होंठों पर जमी पपड़ी भी तुम्हारी शारीरिक स्थिति को परिभाषित कर रही है। हो न हो कोई न कोई बीमारी अंदर ही अंदर पनप रही है। बोलो मित्र क्या बात है।

     भीखू की कक्षा के कुछ साथियों द्वारा उसकी सुस्ती का कारण जानने की हठ करने पर उसने कहा, भाइयो कई दिन से मैं तेज ज्वर व खाँसी से पीड़ित था। बुखार ऐसा कि कभी उतर जाता और फिर इतनी तेजी से चढ़ता की पूरे शरीर को ही जलाकर रख देता। कुछ भी खाने को मन न होता।

      आज कुछ कम होने पर विद्यालय आने की हिम्मत कर पाया। आज आजादी का  अमृत महोत्सव भी तो है। मैंने सोचा आप सभी से मिलकर मन खुश हो जाएगा।  और कुछ अधूरे कार्य भी आपके सहयोग से पूरे हो जाएंगे।

     भीखू के सभी मित्र यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और उसे पूर्ण सहयोग देने की बात कहते हुए कक्षा में  ले जाकर बैठा दिया। भीखू के सभी दोस्त जिनमें नथुआ, खचेड़ू, कलुआ, भैरों, हीरा ने भीखू से पूछा भैया, कुछ खाओगे। हमारे पास जो भी है मिल बांट कर खा लेंगे। भीखू ने कहा नहीं भैया मुझे बिल्कुल भूख नहीं है। आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद। यदि हो सके तो दो घूँट पानी पिला देना। बहुत प्यास लगी है। सारा हलक सूख रहा है। 

     इतना कहते ही भीखू अचेत होकर धरती पर गिर गया। उसके सभी साथी चीखते-चिल्लाते विद्यालय के प्रधानाचार्य भद्राचरण शुक्ला जी के कार्यालय में पहुंचे  और भीखू की अचेतावस्था से अवगत कराते हुए कहा सर, विद्यालय का नल खराब हो गया है। यदि आप अपने घड़े में से थोड़ा जल दे दें तो आपका बड़ा उपकार होगा। यह कहते हुए सभी ने पानी हेतु अपने गिलास आगे बढ़ा दिए।

    इतना सुनते ही प्रधानाचार्य ने सभी छात्रों को फटकार लगाते हुए अपने कक्ष से तुरंत  बाहर निकल जाने का आदेश देते हुए कहा। तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई कि तुमने अपने गंदे पैर मेरे कक्ष में रखे। मेरा सारा कमरा ही अपवित्र कर दिया।

    मैं खूब समझता हूँ कि पढ़ने के नाम पर ऐसे नाटक करना तुम नींच जाति के छात्रों की पुरानी आदत है।

   नहीं-नहीं गुरुवर ऐसा नहीं है, भीखू वास्तव में ही बहुत बीमार है। उसे दो घूँट पानी न मिला तो उसके प्राण संकट में पड़ जाएंगे। नथुआ ने विनम्र भाव से पुनः जल देने की प्रार्थना करते हुए कहा। गुरुजी आप स्वयं चलकर देख लेते तो सत्य असत्य का पता चल जाता।

   प्रधानाचार्य ने क्रोधवश कहा कि मैं अपने घड़े से दो घूँट तो क्या, दो बून्द पानी भी उस अछूत को नहीं दे सकता। मुझे अपवित्र नहीं होना समझे और जहां तक चलकर देखने की बात है तो मैं अपनी परछाईं भी उसके समीप ले जाना पाप समझता हूँ।

    सवर्णों को छोड़कर उसके अन्य सहपाठी बड़े उदास मन से कक्षा में लौट आए। सभी ने मिलकर भीखू को उठाया और विद्यालय परिसर के बाहर बह रहे नाले के पानी को कपड़े से छानकर पिलाने को जैसे ही उसका मुँह ऊपर उठाया तो देखा कि उनका प्रिय मित्र भीखू उन्हें सदा-सदा के लिए छोड़कर जा चुका है।

    सारे के सारे मित्र दौड़े-दौड़े भीखू के गांव पहुंचे और उसके देहांत की दुखद सूचना देकर स्वयं भी दहाड़ें मार कर रोने लगे।

    देखते ही देखते सारा गाँव एकत्र होकर स्कूल में हो रहे भेद-भाव पर रोष प्रकट करने संबंधित पुलिस थाने पहुँचा। परंतु वहां भी ऊंच नीच के घृणित व्यवहार ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। सभी लोग अपना सा मुँह लेकर लौट आए और अपने नसीब को कोसते हुए भारी मन से भीखू का अंतिम संस्कार यह कहते हुए कर दिया कि, अब शांत बैठने से काम नहीं चलने वाला। हम सभी को एक साथ इस भेद-भाव की कुप्रथा से लड़ना ही पड़ेगा।और कहना होगा भाड़ में जाए ऐसी आजादी जिसमें दशकों बाद आज भी......


✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल फोन नंबर 9719275453

               

शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी-----गुलाब जल!

 


आठ साल के बेटे मोहित ने अपनी माँ को बताया,अम्मा मेरी दोनों आँखों में हल्का-हल्का सा दर्द रहने लगा है।मुझे कोई चीज साफ साफ दिखायी भी नहीं देती।

    माँ ने जब यह सुना तो वह सन्न रह गई। तुरंत मोहित को अपने पास बुलाकर उसकी दोनों आंखों को गौर से देखा और बोली, बेटा वैसे तो तुम्हारी आंखें साफ दिखाई दे रही हैं। कहीं कोई गांठ-गुहेरी या लालामी नज़र नहीं आ रही है। फिर भी नेत्र चिकित्सक को दिखाना ही अच्छा रहेगा।

    चल चलके डॉ0 सुचक्षु विद्यार्थी को दिखा लेते हैं।शहर के बड़े ही फेमस आई सर्जन हैं।

    बिना समय गंवाए माँ मोहित को लेकर नेत्र विशेषज्ञ

के "अमर ज्योति"नेत्र चिकित्सालय पहुँच गयी। वहां पहुंचकर तुरंत 800/- का पर्चा बनवाकर बारी आने की प्रतीक्षा करने लगी और दोनों आंखें बंद करके माँ भगवती से बेटे के निरोगी होने की प्रार्थना करने लगी।

    तभी कंपाउंडर ने मोहित का नाम पुकारते हुए अंदर आने को कहा। माँ शीघ्र ही डॉक्टर साहब के चेम्बर में पहुंच गई।

  डॉक्टर ने बड़ी ही बारीकी से मोहित की आंखों का परीक्षण किया। और माँ को बताया कि बच्चे की आंखों में ऐसी कोई बड़ी समस्या तो दिखाई नहीं दे रही। फिर भी मैं आँखों मे डालने की और खाने की दवा दे रहा हूँ। एक हफ्ता खिलाकर बताएं। बच्चे के खाने-पीने का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।

    हरी सब्ज़ियां,मौसमी फलों के साथ-साथ दूध,दही, घी,अंकुरित दालों की मात्रा बढ़ा दें तो अच्छा रहेगा। एक महत्वपूर्ण सलाह यह है कि ज्यादा टी.वी,मोबाइल और पढ़ाई का सही तरीके से न करना भी विशेष रूप से हानिकारक होगा।

    माँ बड़ी तल्लीनता से मोहित के इलाज को अंजाम देती।और उसके खाने-पीने में भी कोई कोताही न करती। रोज़ भगवान के मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ाना भी न भूलती।

    कुछ ही दिनों में मोहित बिल्कुल भला चंगा हो गया। अथक प्रयास से वह आयकर अधिकारी बनकर देश सेवा करने लगा। माँ ने बड़े ही चाव से उसका विवाह उसी की पसंद से उसकी सहकर्मी वंदना से करा दिया।

     दोनों साथ-साथ ऑफिस जाते और एक साथ ही घर लौटकर अपने शयन कक्ष में चले जाते। दिन ढले उठने पर सैर-सपाटे को निकाल जाते।

 बेचारी माँ दो बातें करने को भी तरसती रह जाती।

     उनकी व्यस्तता को देखते हुए उनसे अपनी कोई इच्छा भी व्यक्त न कर पाती।

      एक दिन हिम्मत करके मोहित को पास बुलाकर कहा बेटा मेरी आँखों में कई दिन से बड़ी खुजली हो रही है। तेज जलन के साथ आंखों में सूजन भी आ रही है। शायद चश्मे का नंबर ही बदल गया हो। बेटा समय निकालकर किसी डॉक्टर को दिखा दे तो अच्छा रहेगा।

    अच्छा माँ कहकर मोहित  कमरे में चला गया।,,,, माँ कई दिन तक इसी इंतज़ार रही कि आज चले,आज चले। हारकर माँ ने अपनी पुत्र वधू वंदना को बुलाकर डॉक्टर को दिखाने की बात कही।

    वंदना ने बड़े ही रूखे स्वर में कहा ऐसी भी क्या जल्दी है करवा देंगे। आपको कौन सा दफ्तार जाना है। गुलाब जल रखा है उसे दिन में दो,तीन बार डाल लिया करो।

उम्र के साथ आंख,कान,दांत तो कमज़ोर हो ही जाते हैं।

    आपके साथ भी तो उम्र का तकाज़ा है। पचासी साल की उम्र में आंखे नयी तो हो ही नहीं जाएंगी।

    माँ खून का सा घूँट पीकर रह गयी और ऐसे जीने से तो मौत भली कहकर चुपचाप बरांडे में पड़ी कुर्सी पर जाकर बैठ गयी।

   तभी मोहित हाथ में गुलाब जल की शीशी लेकर माँ के पास आया और बोला देखो माँ वंदना तुम्हारा कितना खयाल रखती है। उसने तुम्हारे लिए यह गुलाब जल भेजा है। इसकी एक-एक बून्द दोनों आंखों में डालती रहो यही काफी है तम्हारे लिए।

    माँ ने शीशी हाथ लेते हुए कहा जीते रहो बेटा।

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

  मोबाइल फोन नंबर  9719275453

                -------------

सोमवार, 30 मई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी के लघु कहानी संग्रह 'अनोखा ताबीज़' का अखिल भारतीय साहित्य परिषद मुरादाबाद की ओर से रविवार 29 मई 2022 को आयोजित समारोह में लोकार्पण

मुरादाबाद के  साहित्यकार  वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी' के लघु कहानी संग्रह 'अनोखा ताबीज़' का  लोकार्पण 29 मई 2022 ,रविवार को अखिल भारतीय साहित्य परिषद मुरादाबाद के तत्वावधान में एम. आई. टी. सभागार में हुआ। इस अवसर पर वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी को उनकी साहित्य साधना के लिए, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, मुरादाबाद की ओर से साहित्य मनीषी सम्मान से अलंकृत भी किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें अंग-वस्त्र, मानपत्र एवं प्रतीक चिन्ह अर्पित किए गए।

 मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुधीर गुप्ता एडवोकेट (वरिष्ठ अधिवक्ता एवं चेयरमैन-एम.आई.टी.) ने कहा कि अपने इस उत्कृष्ट कहानी संग्रह के माध्यम से श्री ब्रजवासी जी समाज के सभी वर्गों तक अपनी पहुॅंच बनाने में सफल होंगे, ऐसा मुझे विश्वास है‌।

     लोकार्पित लघु कहानी संग्रह के विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा - "ब्रजवासी जी हिंदी के समर्पित साधक हैं। उन्होंने सृजन के विभिन्न स्वरूपों, यथा गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, लोकगीत आदि में अपने लेखकीय व्यक्तित्व का विकास किया है। यही नहीं, गद्य में भी उनकी अच्छी गति है और सद्य प्रकाशित लघु कहानियों का संग्रह अनोखा ताबीज़ इस गौरवशाली यात्रा में एक नया पड़ाव कहा जा सकता है। भविष्य में उनसे ऐसी ही उत्कृष्ट कृतियों की अपेक्षा की जाए तो यह स्वाभाविक ही होगा।

विशिष्ट अतिथि एवं मेरठ से उपस्थित हुए गीतकार डॉ. रामगोपाल भारतीय के उद्गार थे - "गीतकार तथा कहानीकार वीरेन्द्र ब्रजवासी ने अपने लघु कथा संग्रह अनोखा ताबीज़ में भारतीय  परिवेश में समाज के रिश्तों को परिभाषित किया है। वह गीतकार तो हैं ही एक अच्छे कहानी कार भी हैं।"

  विशिष्ट अतिथि  साहित्यकार डॉ. महेश 'दिवाकर' ने  कहा - "मुझे विश्वास है कि श्री ब्रजवासी जी की यह कृति भी सभी के हृदयों को स्पर्श करते हुए समाज की महत्वपूर्ण कृतियों में अपना स्थान बनायेगी।"

    विशिष्ट अतिथि डॉ. विशेष गुप्ता का कहना था - "वीरेन्द्र ब्रजवासी जी द्वारा लिखित कहानी संग्रह अनोखा ताबीज़ में अतीत, वर्तमान तथा भविष्य के पात्रों के माध्यम से समाज को सांस्कृतिक मूल्यों से परिपूर्ण सार्थक संदेश मिला है।"

     विशिष्ट अतिथि  अनिल शमी ने कहा - "श्री ब्रजवासी जी का यह सारस्वत प्रयास साहित्यकारों की नयी पीढ़ी को भी निश्चित रूप से प्रेरित करेगा।" 

     कृति के संबंध में विचार रखते हुए राजीव प्रखर का कहना था - "समाज में व्याप्त विभिन्न विद्रूपताओं को सशक्त रूप में सामने रखना व उनके हल प्रस्तुत करना इस कृति की विशेषता है। लेखन संबंधी कुछ समस्याओं के बावजूद श्री ब्रजवासी अपनी बात समाज के आम जनमानस तक पहुॅंचाने में सफल रहे हैं।"

      डाॅ. आर सी शुक्ला, दुष्यंत बाबा, हेमा तिवारी, विवेक निर्मल, हिमानी सागर, श्रीकृष्ण शुक्ल, रश्मि प्रभाकर, राघवेन्द्र मणि, योगेन्द्र पाल विश्नोई, रघुराज सिंह निश्चल,  पूजा राणा, उदय अस्त उदय, के. पी. सरल, ज़िया ज़मीर, डॉ. कृष्ण कुमार नाज़, मनोज मनु, जितेन्द्र'जौली', नजीब सुल्ताना, नकुल त्यागी, वीरेंद्र सिंह, शलभ गुप्ता, रवि चतुर्वेदी, काले सिंह साल्टा, ओंकार सिंह ओंकार, शिशुपाल मधुकर, लीलावती, आदि ने भी कृति के विषय में अपने विचार व्यक्त किए। अर्पित मान पत्र का वाचन अशोक विद्रोही ने किया। 

  कार्यक्रम का संचालन संयुक्त रूप से वरिष्ठ व्यंग्यकार अशोक विश्नोई एवं वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी तथा संयोजन राजीव प्रखर ने किया।डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने आभार-अभिव्यक्त किया।